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भारत की परमाणु शक्ति के विभिन्न पहलुओं को जन जन तक पहुँचाने के लिए डा.नीलम गोयल ने एक अभूतपूर्व मिशन की शुरुआत की है | भारत की परमाणु सहेली के नाम से प्रसिद्द हुईं डा. नीलम, शहर शहर जाकर लोगों को भारत की परमाणु शक्ति की आवश्यकताओ और इसके विभिन्न पहलुओं की जानकारियां दे रही हैं | हमारे संवाददाता ने डा. नीलम गोयल से उनके मिशन के बारे में बिस्तार से बातचीत की |
हमारा हिन्दुस्तान – डा. नीलम, अभी तक के सफ़र से आप क्या जान पाई हैं ?डा. नीलम - मैरे पोस्ट ग्रेजुएशन से लेकर अभी तक के सफर में, मेरे सामने तीन बातें अच्छे से स्पष्ट हो गई है | पहली तो यह कि भारत ने स्वंय को पूर्ण विकासित राष्ट्रों की श्रोणी एवं प्रत्येक भारतीय परिवार के घर में बिजली उपलब्ध कराने हेतु, बिजली उत्पादन संबंधी एक योजना बनाई है। इस योजना के तहत, सभी संभव श्रोतों की उपलब्धताओं को ध्यान में रखते हुये वर्ष 2050 तक प्रतिव्यक्ति सालाना 5000 यूनिट की दर की बिजली का उत्पादन करना है। वर्तमान में यह सिर्फ 700 यूनिट की दर का है। 5000 यूनिट की दर के उत्पादन में 2000 यूनिट की दर का उत्पादन परमाणु ऊर्जा, यानि नाभिकीय श्रोत से एवं 3000 यूनिट की दर का उत्पादन, बाकि अन्य श्रोतों से होना है।
दूसरी बात मेरे सामने यह स्पष्ट हुई कि भारत देश, सा
दूसरी बात मेरे सामने यह स्पष्ट हुई कि भारत देश, सा
फ व सुरक्षित तरीके से परमाणु ऊर्जा के उपयोग से विद्युत के उत्पादन में न केवल विश्व स्तर की हर लिहाज से क्षमता रखता है, अपितु, फॅास्टब्रीडर रियेक्टर्स में यह पूरे विश्व को लीड करने जा रहा है। मैम मैने अपनी जीमेपे का वर्क करते समय यह पूर्णतया स्पष्ट रूप से जान लिया है, कि परमाणु ऊर्जा से विद्युत बनाना न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से ही सर्वोत्तम है, अपितु किसी भी प्रकार की शीर्षतम् की आपातकालीन परिस्थिति में भी हमारे ये परमाणु बिजली घर किसी भी प्रकार से जन एवं माल हानि का तथा संबंन्धित क्षेत्र के समूचे प्राणीजगत के लिये खतरे का कारण नहीं बन सकते हैं। लेकिन हमारे देश में आम से लेकर सभी बुद्विजीवियों में परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने एवं परमाणु बिजलीघरों के प्रति बहुत सी मिथ्या घारणायें हैं । भारत चूँकि एक प्रजातंत्र देश है तो परमाणु ऊर्जा से विद्युत के उत्पादन के रास्ते में भले ही भारत हर तरह की एक्पर्टनेस रखता हो, तो भी आम व क्षेत्रिय जनता का पूर्ण सहयोग न मिल पाने की वजह से समस्यायें आयेंगी।
तीसरी बात यह स्पष्ट हुई कि, चूँकि भारत ही नहीं अपितु किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के तीनों पिलर्स (इंडस्ट्रीज, एग्रीकल्चर एवं सर्विसेज) की नींव विद्युत ऊर्जा ही है। यदि इन तीनों पिलर्स की मजबूती को
तीसरी बात यह स्पष्ट हुई कि, चूँकि भारत ही नहीं अपितु किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के तीनों पिलर्स (इंडस्ट्रीज, एग्रीकल्चर एवं सर्विसेज) की नींव विद्युत ऊर्जा ही है। यदि इन तीनों पिलर्स की मजबूती को
बढ़ाने की बात आती है तो बिजली का उत्पादन तो बढ़ना ही होगा और उसमें भी परमाणु ऊर्जा से विद्युत उत्पादन का समुचित योगदान तो लाना ही होगा। ऐसे में भारत सरकार को परमाणु ऊर्जा विभाग एवं परमाणु विद्युत ऊर्जा उपक्रम के साथ समान्तरीय रूप से एक ऐसी कारगार नीति बनानी एवं उसका तुरंत क्रियान्वयन भी करना होगा ताकि संबंधित क्षेत्र की जनता में परमाणु ऊर्जा एवं विद्युत घरों के प्रति व्याप्त मिथ्याओं को सही जानकारी के द्वारा दूर किया जा सके।
हमारा हिन्दुस्तान - मैं आपसे यह जानना चाहूँगा कि परमाणु बिजलीघरों को प्रारम्भ में क्रियान्वयन में लाने से पहले जो आफ साईट इमरजेन्सी अभ्यास किया जाता है उसकी सार्थकता के बारें में आपका क्या कहना है?डा. नीलम - मैने परमाणु बिजलीघरों के दौरों एवं वहाँ के प्रबंन्धन वर्ग के साथ बातचीत के दौरान् यह जाना कि प्रारम्भिक प्रचालन से पूर्व इस तरह की आपातकालीन अभ्यास किया जाता है। लेकिन, मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ। मैने यह जाना है कि जब क्षेत्रीय पब्लिक पहले से ही कई पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं , वह इन परमाणु बिजलीघरों को परमाणु बम एवं हानिकारक विकिरण के अथाह बिखराब के रूप में लेती है, तो बिना उन्हें पूरी तरह से विषय संबन्धित जानकारी दिये आप ऐसा अभ्यास कैसे कर सकते हैं, जिसमें प्रबंधन वर्ग को जनता के बीच में जाकर अथाह विकिरण का बिखराव हो गया है, जगहें खाली करनी हैं, गले के केंसर न हो, इसके किये आयोडीन टेबलेट्स देनी है, जनता को उस जगह से दूसरी जगह विस्थापित करना है, इत्यादि, जैसे सारे नाटक करने हाते हैं! जबकि हकीकत तो यह है कि अभी तक वल्र्डवाईड 14500 रियेक्टर-वर्ष हो चुके हैं और क्षेत्रिय जनता में से एक भी जन की हानि नहीं हुई है इन परमाणु बिजलीघरों से। यानि, एक गाय अपने रास्ते है और मैं अपने रास्ते, फिर भी गाय के सामने खड़ी हो कर कहू कि ‘‘आ गाय मुझे मार‘’ तो वह गाय मुझे क्यूँ नहीं मारेगी! जबकि, एक तो वह गाय मुझसे परिचित नहीं है दूसरा, उसके सामने आकर उसे ही डराने का नाटक कर रही हूँ। हाँ, यदि वह गाय मुझसे भली भाति परिचित होती और यह महसूस करती कि मैं तो उसका पेट भरने का कारण हूँ तो, न तो मैं ही उसके सामने कहती कि आ मुझे मार और यदि कहती भी तो सधी हुयी उस गाय को मुझ पर इतना तो विश्वास रहता कि मैं उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सकती हूँ, वह मेरे उस कृत्य को खेल के रूप में लेकर मेरे साथ खेलने लगती।
हमारा हिन्दुस्तान – आपने कहा कि अबतक वल्र्डवाईड 14500 रियेक्टर-वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन क्षेत्रीय पब्लिक से कोई भी हताहत नहीं हुआ है। आप चैरनोबिल (रसिया) परमाणु विद्युतघर की दुर्घटना के बारे में क्या कहेंगी जहाँ तकरीबन डेढ़ से दो लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा? और आप क्या यह कहना चाहती हैं कि परमाणु बिजलीघर पूर्णतया सुराक्षित हैं, इनसे क्षेत्रीय जनता को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं हैं?
डा. नीलम - जी में पे के दौरान् न्छव् की एक रिपोर्ट पढी़ है। यह रिपोर्ट न्छव् के पिछले 20 वर्षों के एक गहरे अध्ययन व छानबीन के द्वारा बनी है। इसमें मैने पढा़ है कि चर्नोबिल दुर्घटना, जो कि एक विशाल दुर्घटना के रुप में मानी जाती है, में संबंधित क्षेत्रिय जनता से एक भी व्यक्ति हताहत नहीं हुआ। लोग अपनी अकर्मण्यता, आलसी, शराबी, प्रवृति की वजह से अवसाद की स्थ्तिि में आ जाने की वजह से हताहत हुए थे। मीडिया ने उन लोगों को भयभीत, दूसरों पर आश्रित और बिना मेहनत किये हुए धन पर जीने की प्रवृति में ला दिया था इससे वो लोग अवसाद की स्थिति को प्राप्त होकर हताहत हो गये। स्पष्ट है कि यह सब जनहानि प्रचार-प्रसार तंत्र की हड़बड़ी एवं अंधा धुन्ध प्रबंधन की वजह से हुई थी। यदि प्रसार तंत्र सकारात्मक एंव सही दिशा में अपना पार्ट अदा करता तो वह सब नहीं हुआ होता। मैने अपनी इस ज्ीमेपे में राष्ट्रीय एंव अंतर्राष्ट्रीय ऐजेंसीयों से प्राप्त आंकड़ों को प्रदर्शित किया है, और उनसे साफ जाहिर होता है कि क्षेत्रीय पब्लिक से इन परमाणु बिजलीघरों से एक भी जन की हानि नहीं हुई थी।
हमारा हिन्दुस्तान – आप यह बताइये कि फिर पब्लिक के जेहन् में क्यूँ इन परमाणु बिजलीघरों के प्रति इतने नकारत्मक विचार भरे पड़े हैं?
डा. नीलम - दरअसल, यह बात आम जनता ने स्वयं से ही धारण नहीं की है, अपितु इसका कारण 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी शहरों पर गिराये गये परमाणु बम और उससे हुई विशाल जन-हानि व धन-हानि है। आम जनता ने परमाणु (एटम) शब्द को वहीं से पकड़ा है और उसने परमाणु शक्ति का वह विकराल रुप देखा है-सुना है। आज जब उसे यह मालूम चलता है कि परमाणु की विशाल ऊर्जा से बिजली का उत्पादन करना है तो वह परमाणु ऊर्जा की इस विशालता को भी विकरालता के रुप में देखती है। उस समय मानव ने इस परमाणु ऊर्जा को विनाश के रुप में उपयोग किया था, विकास के रुप में नहीं, लेकिन आज वह इस परमाणु ऊर्जा का प्रयोग गुणात्मक रुप से अपने विकास में प्रयोग कर रहा है। ‘‘यह स्थिती समान्तरीय रुप से उसी प्रकार से है कि जैसे कि माचिस की एक तीली की आग से एक घर को ही नही वरन समूचे गाँव को जलाया जा सकता है जबकि, इसी माचिस की तीली की आग से मानव जाति के लिए आवश्यक भोजन को पकाया जाता है‘‘। पूरे संसार में परमाणु ऊर्जा से बिजली का उत्पादन किया जाता है। जिन देशों में परमाणु ऊर्जा से बिजली का उत्पादन 20 से 85 प्रतिशत तक होता है आज वो देश पूर्ण विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में बने हुए हैं। वहाँ के लोगों का रहन सहन, खान-पान, शिक्षा-दीक्षा, स्वास्थ्य की देखभाल, अर्थात, उनकी जीवन-शैली का स्तर भारत की तुलना में गुणात्मक रुप से बेहतर है।
सन् 1950 से लेकर वर्ष 2008 तक परमाणु ऊर्जा से मानव ने बहुत बिजली का उत्पादन किया है और इस बिजली का उपयोग उसने स्वयं को समृद्ध बनाने में किया। अभी तक संसार के सभी परमाणु ऊर्जा घरों की शीर्षतम् की किसी भी आपातकालीन परिस्थिति की वजह से संबंधित क्षेत्र की मानव जाति की जन व धन की कोई क्षति हुई भी है तो यह क्षति उस क्षति से भी बहुत कम है जो एक बार के वायुयान क्रेश हो जाने से हो जाती है।
हर वर्ष हजारों लोग बाढ़, भूकंप, भूस्खलन या फिर आये दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गवाँ देतेहै। कहने का मतलब है कि परमाणु ऊर्जा ने मानव जाति की समृद्धि के लिए दिया ही दिया है। हमारे जितने भी परमाणु बिजलीघर हैं वो स्वयं सुरक्षित हैं, उनका पूरी तरह से विभिन्न चरणों में परीक्षण करने के बाद ही सरकार से निर्माण की मंजूरी मिलती है। इसके अलावा जिस जगह परमाणु बिजलीघर लगाना होता है, उस जगह पर कई वर्षों तक उसकी भैागोलिक स्थिति का पता लगाया जाता है, अगर वहाँ पर भूकंप या सुनामी आने की जरा भी संभावना होती है तो सरकार वहाँ पर परमाणु बिजलीघर लगाने की अनुमति नही देती है। हमारे देश में गुजरात में भूकंप और चैन्नई में सुनामी आयी थी। संकट की उस घड़ी में भी हमारे परमाणु बिजलीघर चट्टान की तरह अडि़ग और सुरक्षित थे और बिजली का निर्माण सुचारु रुप से कर रहे थे।
हमारा हिन्दुस्तान – क्या आप सोचती हैं कि बस इसी प्रदर्शनी से आपको यहां का सपोर्ट मिल जायेगा?
डा. नीलम - यह कार्यक्रम तो मेरी रणनीति के पहले स्टैप का प्रथम कार्य है। दूसरे कार्य में, मेरे द्वारा रचयित इन तीनो किताबों को छमंतइल च्नइसपब के हर एक घर में गीता, रामायण व कुरान की तरह पहुंँचाना है। सही, सहज जानकारी को आकर्षक रूप में इन किताबों में मैंने रचा है, और आम जनता से क्या अपेक्षायें हंै, वह सब इन किताबों में वर्णित है। तीसरे कार्य के माध्यम से, पाँचवी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को इस विषय पर सही जानकारियों से अवगत कराते हुये उन्हें जरगरूक करूँगी। मेरे इस पहले स्टैप के इन तीन कार्यो का परिणाम यह होगा कि, इससे संबंधित कार्य को हमने पूरे प्रभावी आधार पर अंजाम दे दिया है।
हमारा हिन्दुस्तान – आपके इस पहले स्टैप के इन तीन कार्यो का संबंधित जनता पर क्या प्रभाव महसूस करती हैं?
डा. नीलम - यह हम सब जानते हैं कि हमारे देश की जनता को जब तक किसी विषय से संबंधित जानकारी नहीं होती है तब तक वह उन चंद लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र बनी रहती है, जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के वशीभूत इन्हें मनमोहक एवं भ्रमित करने वाली बातों के जाल में फंसाये रखने में प्रवीण होते हैं। लेकिन आम जनता में से ही, जब कोई एक पूरी गहराई के साथ विषय से संबंधित जानकारी रखने वाला व्यक्ति सही जानकारी आम पब्लिक तक पहुंँचाने में समर्थ हो जाता है, तो फिर सही जानकारी से अवगत होने के बाद, जनता अपना स्वःविवेक प्रयोग करने लग जाती है। 95 प्रतिशत पब्लिक वास्तविकता के पक्ष में आ जाती है। बाकि के 5 प्रतिशत व्यक्ति जो स्वयं स्वार्थों की वजह से पीडि़त हैं, वे आम जनता को लड़वाने का काम नहीं कर पाते है। और मेरे पथ में तो बिल्कुल नहीं ही कर पायेंगे, क्योंकि ये पुस्तकें उन्हें सच्चाई से अवगत तथा स्वयं के विकास का पाठ पढ़ाती रहेंगी। गीता की तरह!
हमारा हिन्दुस्तान – यहाँ दो प्रश्न उठ रहे हैं, पहला, आप किस आधार पर कहती हैं कि वहां विद्यालय एवं चिकित्सा केन्द्र की स्थापना करा सकेगीं, दूसरा क्या वहां राज्य व केन्द्र की राजनीति बीच में नहीं आयेगी?
डा. नीलम - आधार हैं मेरे पास। मैं मष्तिस्क के मद में से वह काम करा लुंगी । आपको बताना चाहूँगी कि दो माहीने पहले इस महा-महोत्सव की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी तो उस समय मेरे पास बैंक में सिर्फ दो हजार रूपये मात्र थे और अब तक 35 लाख रूपये खर्च हो चुके हैं। नीरज जी इंसान के हौसले बुलन्द हों और करने योग्य कर्म साथ हो तो व्यवस्थायें हो ही जाती हैं। दूसरा प्रश्न आपने पूछा, केन्द्र एवं राज्य सरकार की राजनीति से संबंधित, तो इसके बारे में, मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि आप यदि अपनी बात को सीध तौर पर सरकार के सामने रखते हैं और यह वास्तव में ही सृजन का रास्ता है तो राज्य सरकार आम जनता के पक्ष के आधार पर इस प्रकार के स्थापनाओं की स्वीकृति ही नहीं अपितु सहयोग भी करती है।
हमारा हिन्दुस्तान – सभी की यह सोच रहती है कि, आजकल केवल भारत ही परमाणु उर्जा को बढ़ावा दे रहा है, जबकि अन्य देष जैसे जर्मनी, आस्ट्रिया, नार्वे आदि इसे तिलांजली दे रहें है?
डा. नीलम- वर्तमान में चीन, रुस, कोरिया, जापान, फ्रांस तथा फिनलैंड आदि सहित 15 देशों में 60 परमाणु विद्युत रिएक्टर निर्माणाधीन है । नाभिकीय ऊर्जा की आवष्यक विशेषताओं के कारण विश्व में परमाणु उर्जा का पुनरागमन हो रहा है। वर्ष 2030 तक 40 देशों में कुल 500 रिएक्टरों के निर्माण की योजना है।
वल्र्डवाईड 14500 रियेक्टर-वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन अभी तक एक भी जन क्षेत्रीय जनता से हताहत नहीं हुआ है। क्या, इतनी सुरक्षा किसी ओर प्रकार से उद्योगों से हो सकती है? नहीं न!!! परमाणु सहेली ने बताया कि आज देश में 20 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे है और हम 1969 से परमाणू उर्जा से बिजली पैदा कर रहे हैं, तब से लेकर अब तक संबंधित क्षेत्रिय जनता से एक भी व्यक्ति के हताहत नही हुआ है। वर्तमान में चीन, रुस, कोरिया, जापान, फ्रांस तथा फिनलैंड आदि सहित 15 देशों में 60 परमाणु विद्युत रिएक्टर निर्माणाधीन है । नाभिकीय ऊर्जा की आवष्यक विशेषताओं के कारण विश्व में परमाणु उर्जा का पुनरागमन हो रहा है।
हमारे देश में परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन में सिर्फ 5 प्रतिशत का योगदान है जबकि जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्राँस में यह 35 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक है। ये देश यदि अपने सभी परमाणु रियेक्टर्स को कम करके 4 प्रतिशत या इससे भी कम पर आ जाते हैं, तब यदि कहेगें तो हमारा भारत भी सोच लेगा। नहीं तो उनकी दादागिरी भारत पर तो नहीं चलने वाली है। लोगो में एक आम धारणा बन गई है कि पड़ौसी देश परमाणु बिजलीघरों को बंद कर रहे हैं! यह गलत धारणा है, वो देश केवल उन रिएक्टरों को बंद कर रहे है, जिनका कार्यकाल पूरा हो चुका है। उम्र तो हमारे देश के कई बिजलीघरों की भी पूरी हो चुकी है, लेकिन जिस प्रकार हमारे शरीर का हृदय परिवर्तन कर दिया जाता है और फिर से एक नया जीवन मिलता है, ठीक उसी प्रकार हमारे कई परमाणु बिजली घरों का भी हृदय परिवर्तन कर दिया गया है जिससे इनकी उम्र दुगनी हो गई है और ये अनवरत रुप में काम कर रहे हैं, यानि हम परमाणु बिजलीघरों को बंद न करके उन्हें वापिस से नया आयाम देने में समर्थ हैं। आज भारत ने इसमें महारत हासिल कर ली है और
नाभिकीय विद्युत के बारे में, मैं आज यह कहना चाहूँगी कि नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत का उत्पादन सर्वोत्तम है और ऐसा कहने के पीछे गहरे कारण हैं , जापान में एक दोहरा जलजला आया था व इसने पूरी तरह से वहां के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था एवं कई लोग इसमें हताहत हुए। लाखों परिवार, हजारों उद्योग, यातायात, संचार सब कुछ काफी हद तक तहस-नहस, अस्त-व्यस्त हो गये। इस विषाल विनाष की परिस्थिति में भी जापानियों ने यही कहा कि वे स्वयं को पुनः सुचारु रुप से व्यवस्थित कर लेगें और उन्होंने कर भी लिया। जापानियों ने मरने से पहले मृत्यु का वरण नही किया है, अपितु सृजन की राह पर ही चलने की अपनी प्रवृति का दावा किया है! कहने का अर्थ है कि, उसने अपने विकास में हर तरह की व्यवस्था कर रखी थी, लेकिन प्राकृतिक जलजले ने वह सब तहस-नहस कर दिया। इसका मतलब यह तो नही लगाया जा सकता कि उसने विकास के उन प्रयासों से जिनके होने से वह अपने जीवन के विकास के उत्तरोत्तर सोपानों पर चढ़ा है वह सब गलत थे, झूँठ थे, विनाषात्मक थे! इसी प्रकार, उन परमाणु रिएक्टरों से उसने इतनी तादाद् में साफ एवं स्वच्छ ढ़ंग से बिजली पैदा की है, जिसकी वजह से वह विकास के विभिन्न सौपानों पर चढ़ पाया है, वह सब गलत है, झूँठ है, विनाशात्मक हैं? नही न!!! जापानी जानते हैं कि उस दोहरे जलजले में, वास्तव में, जिसने उन्हे बर्बाद किया था, उनका जीवन हरण किया था, उनकी दिनचर्या को तहस-नहस किया था- वह सब तो प्राकृतिक प्रकोप के दोहरे जलजले के कारण से था, उनके परमाणु बिजलीघरों की वजह से तो एक भी प्राणी हताहत नहीं हुआ था।
मेरे अंजान भारतवासी इन परमाणु बिजलीघरों का जोर-शोर से कुप्रचार करने में लग गये हैं, जबकि इस घटना के दो महिने बाद ही जापान ने सरकारी आधार उपर एक प्रेस काँफ्रेंस में अपनी एक वीडियो रिपोर्ट पब्लिष की, जिसमें उसने बताया है कि ‘‘बिना परमाणु विद्युत उर्जा के जापान का कोई अस्तित्व नहीं है’’।
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