दिनांक- २८-०८-२०१२
भारत की परमाणु सहेली की कलम से-
मेरे प्यारे भारतवासियों एक बात में आप सब श्रेष्ठजनों के समक्ष रखना चाहूंगी कि, कई बार हम स्वयं ही अपने विकास के मार्ग में एक अभेद्य दीवार की तरह से खड़े हो जातें हैं।यह कहाँ की सही-सुन्दर बात है कि हम किसी बात की जानकारी रखे भी नहीं और उस बात का विरोध भी करे?
आज एक तरफ तो हम बिजली के लिए स्ट्राइक्स करतें हैं और सम्बंधित अधिकारियों और सरकार को ताना मारते हैं और दूसरी तरफ भारत सरकार की बिजली के लिए प्रस्तावित परियोजनाओं की श्रेष्ठता के बारें में कुछ भी न जानते हुए भी मरने-मारने तक का विरोध कर रहे हैं, क्यों?
क्या प्रजातान्त्रतीय व्यवस्था से मिले अधिकारों का यही काम है कि हम नासमझी में अपने और आने वाली हमारी पीढी के विकास के विरोध में इनका प्रयोग करें? नहीं, न!!!
आपकी यह परमाणु सहेली यह भी जानती है कि भारत की ८० प्रतिशत जनता को अपने २ प्रतिशत खैरख्वाहों के इशारे परचलना पड़ता है! ऐसा नहीं है कि वो सब प्रारम्भ से ही ऐसे ही चलने के लिए जन्म लिए हैं, अपितु, कारन यह है कि वो इस आशा में इन खैरख्वाहों के इशारे पर चलतें हैं कि शायद कुछ अच्छा हो जाए तो उनकी भी आमदनी बढ़ जाए!
भारत देश में चार तबके क लोग हैं-
१. यह वो तबका है जिसकी मासिक आय ४हजार रूपये, या इससे कम, या फिर नगण्य है।
इस तबके के लोगों की जनसंख्या भारत की कुल आबादी की ७५ प्रतिशत है। यह तबका इतनी कम या आज के वैश्विक युग में जहां वह पूरे विश्व से जुडा हुआ है, अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। यह तबका फिर इधर-उधर से जुगाड़ पानी में लगा रहता है। इसकी इस कमजोरी का फायदा तथाकथित खैरख्वाह बहुत अच्छे से उठाना जानतें हैं। परिणाम यह होता है कि भारत की यह ७५ प्रतिशत जनता को ये खैरख्वाह या तो किसी पार्टी का गुलाम बना देते हैं या फिर किसी उच्च अधिकारी से कनेक्शन करवा देते हैं। और फिर चलता है गड़बड़ घोटालों का खेल। इस तरह से भारत की ८० करोड़ जनता दिक्भ्रमित सी अपने अस्तित्व को पाने के लिए कभी अन्ना जी जैसे संत के पीछे भागती है तो कभी श्री केजरीवाल, तो कभी श्रीमती किरण बेदी जी को ही अपना खैरख्वाह समझने लगती है। आखिर में इस ७५ प्रतिशत जनता को मिलता क्या है...इन अतिम्ह्त्वकंक्शी लोगों की छुपी हुई महत्वाकांक्षाएं जिनको ये लोग आपकी इनके प्रति अंध-भक्ति के द्वारा केश करने का प्रयास करते हैं।
२. दुसरे तबके में वो जनता आती है, जिसकी मासिक तनख्वाह ३० से ५० हजार रूपये के बीच है।
यह तबका अपना स्व विवेक प्रयोग करता है और यह निर्णय लेता है कि क्या सही है और क्या गलत है। वह इन तथाकथित खैरख्वाहों को सुनता जरूर है लेकिन उचित और अनुचित का निर्णय स्वयं के पास ही रखता है। लेकिन इसकी प्रतिशतता अपेक्षाकृत बहुत कम है।
३. तीसरा तबका वो है, जिसकी मासिक आमदनी, उसकी अपनी योग्यता के आधार पर ५० हजार रूपये से लेकर ३ लाख और इससे भी ज्यादा है। यह तबका सिर्फ और सिर्फ हर प्रकार के सृजन में लगा हुआ है।
४. चौथा तबका वह है जिसमें खैरख्वाह, तथाकथित समाजसेवी, अति-महत्वाकांक्षी लोग, क्षेत्रीय पार्टियों के कार्यकर्ता, इत्त्यादी लोग आते हैं।
नोट- हमारे देश की ७५ प्रतिशत जनता की सोच पर चौथे तबके के लोंगो के व्यक्तिगत स्वार्थों, भावनाओं व महत्वकांक्षाओं का आधिपत्य बना हुआ है।
खैर, अब बात आती है कि क्या सही है और क्या गलत है?
भारत की परमाणु सहेली का अपना एक नजरिया है:-
१. चाहे हम किसी भी बिल या संशोधन के जरिये अपने लिए संविधान में और अधिकार लिखवाले, या वर्तमान साकार को अयोग्य घोषित करवाकर सत्ता-परिवर्तन करवादें, या फिर तथाकथित भ्रष्टाचार को समाप्त करवाने के या फिर विदेशों में जमा काले धन को लाने के लिए आन्दोलन करें, या जो भी हो करें -लेकिन ऐसा कुछ भी करने से हमारे देश की पर कैपिटा इनकम में कोइ बढ़ोतरी नहीं होने वाली है।
२. तो फिर क्या भारत के पास भी कोई अल्लाद्दीन वाला चिराग है कि जिसको जितना रगड़ने के लिए कहें वह उतना ही ज्यादा रुपया-पैसा धन-दौलत, सुख-समृद्धी हमें ला-लाकर देता रहे?
नोट:- हाँ है, भारत के पास ऐसा एक चिराग, जिसे हम जितना ज्यादा राग्द्के के लिए कहेंगे वह उतनी ही रोशनी व सुख-समृद्धि लेकर आयेगा।
हे श्रेष्ठजनों यह चिराग बहुत ही साफ़-स्वच्छ व हर मायने में सुरक्षित है हम सब लोगों के लिए। इसकी बहुत अच्छे से बारीकी से जांच-पड़ताल करने के बाद ही अपने देश में भी लाया गया है। लेकिन हमारी बहाद्दुर लेकिन अज्ञानी जनता इस चिराग को अपनाने में हिचकिचा रही है? उसका कारण है कि, एक बार विश्व ने इस चिराग का उपयोग मानव-जाति के विनाश में किया था, लेकिन अब वही विश्व इस का उपयोग दूसरी पद्धति के आधार पर अपने विकास के लियी आवश्यक बिजली के उत्पादन के लिए कर रहा है। हमारा देश इस मामले में बहुत पिछड़ा हुआ है।
दुर्भाग्य यह है कि चौथे तबके के लोग, हमारी ७५ प्रतिशत निर्दोष जनता को अपनी ढाल बनाकर इस चिराग का विरोध कर रही है। और यह विरोध सिर्फ और सिर्फ अपने निहित स्वार्थ के लिए करवा रही है।
उदाहरण- "गोरखपुर न्यूक्लियर पावर परियोजना" का विरोध सिर्फ एक आदमी के अपने पर्सनल-स्वार्थ की वजह से हो रहा है। और मालुम है, वे महाशय पहले वहां कम दामों पर जमीने खरीदेंगे फिर जब इस परियोजना के कार्य का श्रीगणेश हो जाएगा तो उसी जमीन को ऊँचे-ऊँचे दामों पर बेचेंगे। इस पर्सनल-स्वार्थ ये महाशय इतने डूब चुके हैं कि इन्होने वहा की क्षेत्रीय पार्टीज को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को, केजरीवाल जी को, विदेशी लोगों तक को मिलाकर एक परमाणु विरोधी सगठन बना रखा है और वहां की निर्दोष जनता से मरने-मारने के विरोध करवातें हैं। उफ! कितनी भयानक बात है कि इन तथाकथित खैरख्वाह महाशय जी ने सिर्फ अपने स्वार्थ के कारण ७३५ अरब रूपये से लेकर ७३५० अरब रूपये के बराबर का समग्र विकास रोक रखा है। और कितनी आसानी से हम लोग ही कह देते हैं कि सरकार निक्कमी है या हम तो सही थे वो ही सही नहीं थे!
बिजली अधिकारी चोर है निक्कमें है बिजली नहीं देतें हैं।
आज बस इतना ही........आपकी परमाणु सहेली।
No comments:
Post a Comment