Saturday, 29 September 2012




भारत की परमाणु सहेली व्यक्तिगत रूप से माननीय प्रधानमंत्री, डाॅ. 

मन मोहन सिंह जी से पूरी तरह प्रभावित है।

२२ व २३ सितम्बर, २०१२ को राष्ट्र के नाम माननीय प्रधानमंत्री जी के संदेशों से एक बात तो साफ जाहिर हो जाती है कि माननीय डाॅ. मन मोहन सिंह जी न केवल एक गहरी पैठ व दूरदर्शिता रखने वाले अर्थशास्त्री ही हैं, बल्कि निहायत ही अनुशासन प्रिय सर्व श्रेष्ठ शासक भी हैं।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने वैश्विक उथल

-पुथलता को मद्देनजर रखते हुए, भारत की अर्थव्यवस्था कभी मजबूर मोड़ पर न आने पाए इसके लिए कुछ कठोर एवं अप्रिय लगने वाले फैसले लेने का सन्देश दिया।
यह बात ठीक उसी प्रकार है, जैसे एक पिता अपने बेटे के भविष्य के प्रति पूरी तरह से दूरदर्शी एवं निर्धारित हो कर पूरे अनुशाशन पूर्ण वातारण में उसकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करता है ताकि यह बेटा आने वाले समय में हर स्थिति में एक कामयाब नागरिक बनकर निरंतर विकास के मार्ग में आगे बढ़ता रहे। ऐसे में पडौसी लोग भले उन पाबंदियों का रोना रोकर उसके बेटे को बरगलाने का कुप्रयास करते रहें, परन्तु एक बेटे के लिए सही क्या है और गलत क्या- इसका निर्धारण करना एवं फिर उसे तनिक कठोर हृदय के साथ क्रियान्वित करना- एक गहरी समझ व दूरदर्शिता रखने वाला वह पिता बखूबी जनता है।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने भारत की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता हेतु बहुत ही सृजनात्मक एवं कारगार योजनायें तैयार की हैं, साथ ही अर्थव्यवस्था की बेकबोन (विद्ध्युत ऊर्जा) को मजबूत करने के लिए बिजली उत्पादन की योजना के तहत वर्ष २०५० तक प्रति-व्यक्ति प्रति-वर्ष २००० यूनिट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। जिसमें, २००० यूनिट की दर का उत्पादन नाभिकीय ऊर्जा से व ३००० यूनिट की दर का उत्पादन बाकी के अन्य सभी संभव स्त्रोतों से होना है।
बिजली उत्पादन का यह लक्ष्य यदि पूरा होता है तो आज भारत की पर कैपिटा आय जो कि ५३,३०० रूपये है वह १८ लाख रूपये से लेकर ३६ लाख रूपये तक की हो सकेगी और तब भारत विश्व के शीर्ष श्रेणी के देशों में शामिल हो जाएगा।
आज देखिये, जैतापुर (महाराष्ट्र) की ९९६० मेगावाट नाभिकीय विद्ध्युत परियोजना में एक वर्ष की देरी से भी भारत के समग्र विकास में २६१७४.८८ अरब रूपये से लेकर ५२३४९.७६ अरब रूपये के बराबर की सालाना वृद्दि रूकी हुई है।

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