Saturday 7 November 2015

The Real World Knowledge| भारत की चारों महत्वपूर्ण योजनाओं के सन्दर्भ में वास्तविक संसार का ज्ञान

भारत की चारों महत्वपूर्ण योजनाओं के सन्दर्भ में 

वास्तविक संसार का ज्ञान 


  1. 1.           भारत की समग्र विद्ध्युत उत्पादन की योजना-

  • बिजली उत्पादन के सभी संभव स्त्रोतों की महत्ता एवं सीमाओं को मद्देनजर रखते हुए, भारत ने दूर दराज के क्षेत्रों वाले परिवारों में भी प्रकाश करने एवं भारत के चहुँमुखी विकास के लिए आवश्यक बिजली का उत्पादन करने के लिए वर्ष 2004 में एक योजना बनाई है।
  • इस योजना के मुताबिक भारत को प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष, 2000 यूनिट परमाणु ऊर्जा से, 1300 यूनिट सौर ऊर्जा से,  250-250 यूनिट जल एवं पवन से, 1000 यूनिट कोयले से व 300 यूनिट बाकि के अन्य स्त्रोतों से बनाना निश्चित किया गया।
  • परमाणु ऊर्जा के अतिरिक्त, भारत अन्य किसी भी स्त्रोत से इन दरों से ज्यादा बिजली पैदा कर ही नहीं सकता है।
  • भारत में सौर ऊर्जा से बिजली बनाने और परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने के सन्दर्भ में आम से लेकर खास जन की यह धारणा बनी हुई है और बना भी दी गयी है कि, सौर ऊर्जा से तो हम जब चाहें  जितनी बिजली बना लेंगे और इसको बनाने में न तो किसी प्रकार कोई खतरा है और सौर पावर प्लांट्स बनाने में अपेक्षाकृत कम खर्चा आता है। अतः, परमाणु ऊर्जा से बिजली क्यों बनाने की वकालत करें; जबकि, परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने वाले परमाणु बिजलीघरों से विशाल मात्रा में जनलेवा हानिकारक विकिरणों का उत्सर्जन होता है, परमाणु बिजलीघर बम की तरह फट सकते हैं, परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाना बहुत महंगा है, भारत के पास परमाणु ईंधन है ही नहीं, परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए हमें अमेरिका, फ्रांस, रूस इत्यादि देशों की मदद लेनी पड़ती है, इत्यादि-इत्यादि। यदि यह सोच वास्तविक रूप से यथार्थ होती, सच होती तो बहुत अच्छा था, कोई मतभेद ही नहीं होता। लेकिन वास्तविकताएं पूर्णतः भिन्न हैं।
पहले सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के सन्दर्भ में- 
सौर ऊर्जा से भारत के प्लान के मुताबिक 1300 यूनिट प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष बिजली बननी है।
इसके लिए भारत को कम से कम 11 लाख 20 हजार मेगावाट के सौर पावर प्लांट लगाने होंगे।
इन प्लांट्स के लिए 28000 वर्ग किलोमीटर भूमि की आवश्यकता होगी और इतनी सारी भूमि यदि कृषि योग्य भूमि से लें तो यह सृजन का नहीं अपितु विनाश का रास्ता है। 
इस योजना के मुताबिक भारत को अपने कुल 36000 वर्ग किलोमीटर के रेगिस्तान में से 28000 वर्ग किलोमीटर की रेगिस्तानी भूमि को सौर पावर प्लांट लगाने के प्रयोग में लाने का प्रावधान है।
सौर ऊर्जा से सतत रूप से बिजली का उत्पादन नहीं होता है। अर्थात, सौर ऊर्जा से प्राप्त बिजली न तो कार्यरत व नई-नई आने वाली इंडस्ट्रीज के लिए और न ही रेलवे के लिये आवश्यक बिजली का उत्तम, स्थिर व विश्वसनीय आधार बन सकती है।
सौर ऊर्जा पावर प्लांट अपने एक बैकप ‘पम्पड स्टोरेज हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी स्टेशंस के माधयम से भारत की कृषि में सिंचाई हेतु आवश्यक पानी को सम्बंधित नदियों व तालाबों व कुओं, इत्यादि से पानी को पम्पड आऊट करने के काम आएंगे।
यह योजना भी मुख्य रूप से एक पहली योजना ‘भारत की सभी नदियों के अन्तर्सम्बन्ध की योजना से जुडी हुई है। यदि भारत की यह पहली योजना समयान्तर्गत सफलतापूर्वक क्रियान्वित होती है, तो ही सौर ऊर्जा की अहम योजना भी आगे बढ़ेगी।
लेकिन भारत की पहली योजना ही भ्रांतियों, पूर्वाग्रहों, क्षेत्रीय नेताओं, जन-प्रतिनिधियों, तथाकथित खैरख्वाहों की वजह से विरोधों का शिकार बनी हुई है, तब, कैसे कर भारत सौर ऊर्जा योजना के सफलता पूर्वक क्रियान्वयन का दावा कर सकते हैं!!!
सबसे अहम दो बाते ओर भी हैं- सौर ऊर्जा से प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति औसतन 115 यूनिट के हिसाब से भारत की पूरी जनता को बिजली मुहैया करवाने के लिए 100,000 मेगावाट के सौर पावर प्लांट लगाने होंगे जिनकी स्थापना का खर्चा 16000 अरब रूपये के बराबर होगा।
भारत की योजना के मुताबिक़ 1300 यूनिट प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष के हिसाब से सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन के लिए तकरीबन 11,00,000 मेगावाट के सौर पावर प्लांट लगाने होंगे, जिनके स्थापन का खर्चा तकरीबन 1,73,000 अरब रूपये आएगा। 
सौर ऊर्जा के 1000 मेगावाट के पावर प्लांट से 70 अरब रूपये से लेकर 420 अरब रूपये के बराबर के विकास में बढ़ोतरी होती है।
जो हमारे सौर पेनल्स हैं, उनसे हम कुछ किलोवाट तक की ही बिजली प्राप्त कर सकते हैं।
सौर पेनल्स हमारे घरों में, पार्क में, कार्यालयों में रोशनी देने का आधार बन सकते हैं।
लेकिन इंडस्ट्रीज और इंफ्रास्ट्रक्चर को वृहत्त मात्रा में आवश्यक बिजली हेतु तो कई हजारों मेगावाट के सतत्, स्थिर व विश्वसनीय रूप में कार्यरत पावर प्लांट्स चाहिए।
सौर प्लांट्स से सतत व स्थिर बिजली प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
और यदि इसमें जन हानि के खतरे की बात करें तो सौर प्लांट्स से इस दर की बिजली बनाने में 25000 व्यक्तियों के हताहत होने की संभावना रहती ही है।

अब हम आते है, परमाणु ऊर्जा पर 
परमाणु ऊर्जा से 1300 यूनिट सालाना प्रतिव्यक्ति बिजली प्राप्त करने के लिए 600 वर्ग किलोमीटर भूमि की आवश्यकता होगी।
परमाणु ऊर्जा के 1000 मेगावाट के पावर प्लांट से 550 अरब रूपये से लेकर 5500 अरब रूपये के बराबर के विकास में बढ़ोतरी होती है।  
परमाणु ऊर्जा से प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति औसतन 115 यूनिट के हिसाब से भारत की पूरी जनता को बिजली मुहैया करवाने के लिए 330 अरब रूपये की लागत के पावर प्लांट लगाने होंगे।
भारत की योजना के मुताबिक़ 2000 यूनिट प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष के हिसाब से परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन के लिए तकरीबन 4,80,000 मेगावाट के परमाणु पावर प्लांट लगाने होंगे, जिनके स्थापन का खर्चा तकरीबन 96,000 अरब रूपये आएगा।
इतनी दर से बिजली प्राप्त करने में 300 व्यक्तियों के हताहत होने की सिर्फ संभावना रहेगी। 
भारत के पास ईंधन की किसी प्रकार से कोई कमी नहीं है।
भारत आज यदि 153 हजार मेगावाट के परमाणु बिजलीघर लगाने हेतु बाहरी सहायता ले रहा है तो सिर्फ इसलिए कि बिजली की किल्ल्त भरे कठिन समय में बिजली की कमी की वजह से भारत में अराजकता न फैल जाए।
भारत के पास अपना थोरियम चक्र तकरीबन तैयार हो चुका है।
आने वाले समय में भारत परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने के सन्दर्भ में स्वयं ही आत्मनिर्भर हो जाएगा।
अकेली परमाणु ऊर्जा के बल पर कई सदियों तक बिजली की डिमांड को भारत सतत रूप से पूरी करता रहेगा।
यह एक अकाट्य सत्य है कि परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाना हर लिहाज से सर्वोत्तम है, लेकिन विज्ञान व तकनीकि के सन्दर्भ में वास्तविक संसार के ज्ञान से अनजान होने और भ्रांतियों एवं पूर्वाग्रहों व तथाकथित खैख्वाह के चलते इसी स्त्रोत का भारत में सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। जहाँ तक बात ईंधन से लेकर इन परमाणु बिजलीघरों की स्थापना, प्रचालन और रक्षण-अनुरक्षण की है, तो हकीकत यह है कि भारत इस क्षेत्र में समूचे विश्व में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हो चुका है। इसके आलावा, कोयला, जल, हवा और अन्य भारत की आवश्यक बिजली की पूर्ति करने में नितांत रूप से असक्षम है। 250-250 यूनिट जल एवं पवन से, 1000 यूनिट कोयले से व 300 यूनिट इनमें से जल से अधिकतम सीमा में बन सकती है। 

इस थोड़ी सी ही सच्चाई से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि हमें सभी स्त्रोतों से उनकी उपलबधता एवं  महत्वता को मद्देनजर रखते हुए बिजली का उत्पादन करना होगा। साथ ही, हमारी सभी नदियों के अन्तर्सम्बन्ध की योजना का भी समान्तरीय रूप से क्रियान्वयन होना होगा। 

भारत की कृषि के सन्दर्भ में वास्तविक ज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य: 
  • भारत की 68 प्रतिशत जनता ग्रामीण इलाकों में निवास करती है।
  • इस 68 प्रतिशत  जनता का जीविकोपार्जन  का माध्यम येन-केन प्रकारेण कृषि ही है।
  • भारत की 1600 लाख हेक्टेयर कुल उपजाऊ भूमि में से 826 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही कृषि होती है।
  • भारत की 874 लाख हेक्टेयर बुवाई योग्य भूमि बंजर पडी हुई है।
  • भारत की सम्पूर्ण कृषि विकेंद्रीकृत है। अर्थात, भारत का 90 प्रतिशत भूस्वामी अपनी जमीन पर खेती करने के लिए अपने ही क्षेत्र के किसी जरूरतमंद को या तो पाणत (आधे बट पर) पर या लीज पर दे देता है। यह जरूरतमंद इंसान पाणत या लीज पर ली गयी इस भूमि पर बहुत ही सहज और साधारण तरीके से खेती-बाड़ी करता है। इस प्रकार की खेती से उसे अपना पेट भरने तक की व्यवस्था भी मुश्किल से हो पाती है, आय की बात तो बहुत दूर रहती है।
  • भारत की केवल 305.6 लाख हेटेयर भूमि पर ही सिंचाई की व्यवस्था है।
  • भारत की प्रति हेक्टेयर भूमि से औसतन 2200 किलोग्राम अनाज का उत्पादन होता है
  • विकसित देशों में यह 6500 किलोग्राम से लेकर 8000 किलोग्राम तक का है।
  • भारत की कृषि में विज्ञान व तकनीकि के विभिन्न अनुप्रयोगों का प्रयोग बहुत ही सीमित है।
  • भारत में आवागमन की  व्यवस्था का स्तर विकसित देशों की आवागमन व्यवस्था का 15 प्रतिशत  तक का भी नहीं है ।
  • कई बार तो बाढ़, सूखे तथा उचित भंडारण, आवागमन व खुरदरे बाजार की व्यवस्था न होने की वजह से किसान की फसल पानी के भाव तथा पूरी तरह से बेकार भी हो जाती रही है।
  • भारतीय किसान को उसके उत्पाद की कीमत औसतन 12 रूपये तक ही मिल पाती है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर उसी उत्पाद को बाजार से 100 रूपये में खरीदता है। विकसित देशों में, किसान को अपने उत्पाद की कीमत 65 से 75 रूपये तक मिल जाती है, बाद में यदि उसको जरूरत पड़ती है तो यही वस्तु वह 100 रूपये में खरीदता है। 

भारत की कृषि के नौ मुख्य स्तम्भ हैं: -
  • 1.स्थिर एवं विश्वसनीय सिंचाई;
  • 2.उचित गुणवत्ता के बीज;
  • 3. उचित गुणवत्ता के  खाद;
  • 4.फसल की कटाई;
  • 5. भंडारण,
  • 6. यातायात व सड़कें;
  • 7. बाजार;
  • 8. तैयार माल की कीमत; और सबसे महत्वपूर्ण,
  • 9. प्रबंधन। 
वर्तमान में, भारत की कृषि के इन नौ स्तम्भों के स्तर के मुताबिक़; कृषि व इसके सहयोगियों से राष्ट्र की सकल आय में योगदान, मात्र 18,150 अरब रूपये के बराबर का रहा।
भारत की कृषि के इन 9 स्तम्भों के स्तर को उत्कृष्ठता के शीर्ष तक पहुँचना है। भारत की 1600 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का केन्द्रीयकरण होना है। यह केन्द्रीयकरण इस प्रकार से होना है कि इस पर स्वामित्व तो सम्बंधित भू-स्वामियों का ही रहेगा, लेकिन इस जमीन को प्रतिवर्ष स्वदेशी कम्पनीयों द्वारा या सरकार द्वारा लीज पर ले लिया जाना होगा। इससे भू-स्वामियों को गुणात्मक रूप से लाभ होगा। इस प्रकार का केन्द्रीयकरण भू-स्वामियों को भी स्वीकार्य होगा। और, ऐसा तभी संभव है जब भारत की जनता भारत के सन्दर्भ में इन हकीकतों से रूबरू हो सकेगी !
इस महान लोकतांत्रिक देश में ऐसा हो पाया तो ही; भारत की यही कृषि व इसके सहयोगी, भारत की सकल आय में, सालाना, 21 लाख अरब रूपये के बराबर का योगदान करने लगेंगे। 


भारत की एक ओर महत्वाकांक्षी योजना ‘‘सभी नदियों के अन्तर्सम्बन्ध की योजना” 

  • इस योजना के सन्दर्भ में भी पूरा भारत पक्ष-विपक्ष में बँट गया है।
  • और भारत की यह योजना भी कछुए से भी धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
  • एक पक्ष कहता है कि, यह योजना देश की अर्थव्यवस्था की समृद्धता, अर्थात, चहुँमुखी विकास के लिए सबसे उत्तम योजना है, अतः इसे फलीभूत होना ही चाहिए।
  • दूसरा पक्ष कहता है कि भारत की सभी नदियों को आपस में जोड़ने का कार्य प्रकृति विरूद्ध प्रयास हो सकता है।
लेकिन, शाश्वत और सत्य तथ्य तो यही है कि, जब मानव जाति इस धरा पर थी ही नहीं और पृथ्वी पर प्रकृति अपने पूर्ण लावण्य पर थी, उस समय भारत की सारी नदियां आपसे में इंटर लिंक्ड थीं। हाँ, इस धरा पर जैसे-जैसे विभिन्न जीव-जंतुओं के साथ-साथ मानव जाति का भी प्रादुर्भाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे ये नदियां सिकुड़ती, बदलती और सिमटती चली गईं, कुछ तो लुप्त प्रायः हो चुकी हैं।

उदाहरणार्थ, थार की रेगिस्तानी भूमि।
इतिहास कारों व अन्वेषणकर्ताओं के मुताबिक वहाँ पहले सरस्वती नदी बहा करती थी। यह भू-भाग गहरे वनों से पूरी तरह से आच्छादित था।
मानव ने जब मांसाहारी जंतुओं, जैसे शेर, चीते, सियार, इत्यादि को लगभग उस हिस्से से खत्म कर दिया, तब ऐसे जंतु बच गए जो सिर्फ घास और पेड़-पौधों पर आश्रित थे।
इन बचे हुए शाकाहारी जंतुओं ने उस हिस्से की अधिकतम वनस्पति चर डाली।
वर्षा की कमी हो गयी। वनस्पति जगत भी धीरे-धीरे लुप्त हो गया।
उस भू-भाग से कुछ जीव-जंतु तो अन्यंत्र पलायन कर गए और बहुत कुछ तो लुप्त ही हो गए, रह गया तो सिर्फ थार का रेगिस्तान। 
मानव ने अपने आप को हड़बड़ी पूर्वक जीवित रखने और अपने मौज-शौकों को पूरा करने के चक्कर में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की, जीव-जंतुओं को मारा और प्रकृति को असंतुलित कर दिया, फलतः सभी नदियां एक-दूसरी से पृथक होती चली गईं।
आज वह सभी नदियों को जोड़ने की बात करता है और भारत की समूचि धरा को अपने स्वहित के चलते हरा-भरा कर देना चाहता है, तो मानव का यह कृत्य प्रकृति विरूद्ध नहीं, अपितु संगत ही है।
सभी नदियों का पुनः अन्तर्सम्बन्ध बनने से भारत की पूरी जमीन हरी-भरी होगी, तो जाहिर सी बात है कि प्रकृति पुनः स्वयं अपनी यौवन अवस्था में आ सकेगी।
हिन्दू-धर्म के मुताबिक गंगा-जमुना-सरस्वती का संगम था। आज नहीं है। लेकिन, उसी संगम की याद में, उस संगम की महत्ता के भावों में- कुम्भ का मेला आज भी लगता है और सदियों तक लगता रहेगा।
भारत में गंगा-जमुना-सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर हर साल लगने वाले तीर्थ मेले में संसार भर से लोग आते हैं। भारत के ग्रामीण आँचल की जनता तो इस स्थान पर जाने मात्र में ही अपने जीवन की सार्थकता सफल करती है, तो फिर, संगम को तीर्थ मानने वाली जनता फिर कैसे कर नदियों के अन्तर्सम्बन्ध का विरोध करे! 

हाँ, जनता अज्ञानी है, वह संगम को धार्मिक परिपेक्ष्य में तीर्थ तो मानती है, लेकिन संगम की भौतिक महत्ता से पूरी तरह से अनजान है। उसकी इसी अन्जानी प्रवृति का नाजायज फायदा उठाते हैं, कुछ तथाकथित रूप से ज्ञानी व स्वार्थी लोग।

No comments:

Post a Comment